2019 बना ईयर ऑफ स्ट्रीट प्रोटेस्टर्स, सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरी 20 देशों की जनता

2019 बना ईयर ऑफ स्ट्रीट प्रोटेस्टर्स, सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरी 20 देशों की जनता
https://ift.tt/2EZYsAT

इंटरनेशनल डेस्क. दुनियाभर में 2019 को दशक के सबसे बड़े प्रदर्शनों का साल कहा जा रहा है। 2011-12 में अरब स्प्रिंग (अरब देशों में प्रदर्शनों के दौर) के बाद 2019 पहला ऐसा साल कहा जा रहा है, जब एक के बाद एक 15 देशों में सरकार या उसकी नीतियों के खिलाफ लोगों ने आवाज उठाई। सभी देशों में प्रदर्शन के मुद्दे अलग रहे। मसलन इक्वाडोर और बोलीविया में बड़े स्तर पर फैली असमानता विरोध प्रदर्शनों का बड़ा कारण रही। वहीं, लेबनान और इराक में सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार के विरोध में लोग एकजुट हुए। इसके अलावा राजनीतिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर पहले हॉन्गकॉन्ग और उसके बाद स्पेन में प्रदर्शन शुरू हुए।

2018 के अंत में शुरू हुए कई प्रदर्शनों ने 2019 में रफ्तार पकड़ी। वॉशिंगटन पोस्ट ने प्रदर्शन की इस लहर को ‘ग्लोबल प्रोटेस्ट वेव ऑफ 2019’ करार दिया। कई अन्य अखबारों ने इस साल को ‘ईयर ऑफ स्ट्रीट’ प्रोटेस्ट कहा। फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ पेरिस-एस्ट मारने-ल-वैली की रिसर्च के मुताबिक, 2019 के ज्यादातर प्रदर्शन एक दूसरे से जुड़े रहे। यूनिवर्सिटी ने इसे 1820 (5 देश), 1848 (18 देश), 1989 (15 देश) और 2011 (18 देश) के प्रदर्शनों की नजीर बताया। इन सभी सालों में दुनियाभर के प्रदर्शनकारियों ने बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन जताया था। 2019 में 15 से ज्यादा देशों में लोग सड़कों पर उतरे। कुछ देशों में हुए छोटे प्रदर्शनों को मिला लें, तो प्रदर्शन वाले देशों की संख्या 20 के पार पहुंच जाती है। इनमें से 5 देशों में राष्ट्राध्यक्षों को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा।

  1. फ्रांस में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने को लेकर नवंबर 2018 में प्रदर्शन शुरू हुए। महज 10 दिन के अंदर सोशल मीडिया के जरिए प्रदर्शन की आग पूरे देश में फैल गई। सरकार पर आम जरूरतों की चीजों पर टैक्स बढ़ाने के आरोप लगने लगे। इसी के साथ लाखों की संख्या में लोग यलो वेस्ट पहनकर सड़कों पर उतरने लगे। आमतौर पर ड्राइवरों और इमरजेंसी के काम में लगे लोगों के लिए ही यलो वेस्ट पहनने का प्रावधान है। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इन्हें देश के इमरजेंसी हालात के पर्याय के तौर पर पहनने लगे। इसी के साथ प्रदर्शनों का नाम पड़ा- यलो वेस्ट प्रोटेस्ट। 21 नवंबर 2018 को प्रोटेस्ट में सबसे ज्यादा 3 लाख लोग जुटे। इस साल वृद्धों की पेंशन पर टैक्स लगाए जाने के मुद्दे पर भी फ्रांस में प्रदर्शन जारी रहे।

  2. सूडान में दिसंबर 2018 में प्रदर्शन शुरू हुए। लोगों ने सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर असहयोग आंदोलन चलाया। चार महीनों तक चले प्रदर्शन के बाद सेना ने 30 साल तक देश पर राज करने वाले राष्ट्रपति ओमार अल बशीर का तख्तापलट कर दिया। हालांकि, इसके बावजूद जनता के प्रदर्शन नहीं रुके और लोगों ने सेना के तानाशाही रवैये का विरोध किया। जून 2019 में खरतूम नरसंहार में 128 प्रदर्शनकारियों के मारे जाने के बाद सेना के खिलाफ प्रदर्शन तेज हुए और जून में ही करीब 2,50,000 प्रदर्शनकारियों ने एक साथ सड़कों पर जुटकर सैन्य शासन का विरोध किया। सूडान में प्रदर्शन अभी भी जारी हैं।

  3. इस साल फरवरी में राष्ट्रपति अब्देलअजीज बूटेफ्लीका ने पांचवीं बार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा की। इसके विरोध में लाखों की संख्या में जनता सड़कों पर आ गई। लोगों ने 20 साल के बूटेफ्लीका के शासन को देश के लिए मुश्किल समय बताया और सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। सरकारी मीडिया के मुताबिक, 1 मार्च को करीब 30 लाख लोगों ने अल्जीरिया में प्रदर्शन किया। विरोध के बीच बूटेफ्लीका को अप्रैल में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, कुछ अन्य नेताओं के इस्तीफा न देने और गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों के रिहा न किए जाने की वजह से साल के अंत तक प्रदर्शन जारी रहे।

  4. हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन इसी साल जून में भड़के थे। दरअसल, हॉन्गकॉन्ग सरकार ने चीन के दबाव में प्रत्यर्पण विधेयक पेश किया था। इसके तहत हॉन्गकॉन्ग में पकड़े गए अपराधियों को कार्रवाई और जांच के लिए चीन भेजा जा सकता था। जबकि इससे पहले तक हॉन्गकॉन्ग का कोई भी अपराधी चीन नहीं भेजा जाता था। इस बिल के विरोध में हॉन्गकॉन्ग के नागरिक सड़कों पर उतर आए थे। दो महीने तक प्रदर्शन चला, जिसके बाद हॉन्गकॉन्ग सरकार ने इस बिल को वापस ले लिया। लेकिन हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन नहीं थमे, बल्कि प्रदर्शनकारियों ने आजादी और लोकतंत्र की मांग की आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया है। हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन का सबसे बड़ा महीना जून रहा, जब 10 लाख प्रदर्शनकारी एक साथ सड़कों पर उतरे।

  5. रूस के मॉस्को में जुलाई 2019 में प्रदर्शन शुरू हुए। पुतिन सरकार पर चुनावों में विपक्षी उम्मीदवारों को बैन करने का आरोप लगा। अगस्त में साफ चुनावों की मांग को लेकर देशभर में 60,000 से ज्यादा प्रदर्शनकारी जुटे। 1500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए। कुछ लोगों को दो साल से ज्यादा जेल की सजा सुनाई गई।

  6. मिस्र के काहिरा, एलेक्जेंड्रिया और कुछ अन्य शहरों में 20, 21 और 27 सितंबर को बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने सरकार के अधिकारियों पर सार्वजनिक फंड्स को निजी जरूरतों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने 4 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें 11 पत्रकार भी शामिल थे। इसके अलावा 100 से ज्यादा बच्चे और विदेशी नागरिक भी हिरासत में रखे गए।

  7. इराक में लंबे समय से जारी भ्रष्टाचार और राजनीति में पड़ोसी ईरान के दखल के खिलाफ 1 अक्टूबर 2019 को पहली बार प्रदर्शन शुरू हुए। इसे तिशरीन रेवोल्यूशन नाम दिया गया। पहले दिन ही प्रदर्शनकारियों की बड़ी संख्या देखकर प्रधानमंत्री अदिल अब्दुल-महदी ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। लाखों की संख्या में लोग प्रदर्शन के लिए जुटे। पुलिस और सेना की फायरिंग में अब तक 350 लोग मारे जा चुके हैं। वहीं 1000 से ज्यादा घायल हुए हैं। 29 नवंबर को महदी के इस्तीफे के बावजूद प्रदर्शन नहीं थमे। 26 दिसंबर को राष्ट्रपति बरहम सलीह ने भी इस्तीफा दे दिया।

  8. बोलिविया में इस साल अक्टूबर में चुनाव हुए। इनमें बड़े स्तर पर धांधली का आरोप लगा और प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति इवो मोरालेस की सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे। इन आरोपों पर मोरालेस ने अमेरिका से जांच करवाई और दोबारा चुनाव कराने की बात कही। हालांकि, पुलिस और सेना ने मोरालेस से इस्तीफा देने की मांग कर दी। मोरालेस राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर मेक्सिको चले गए। इसके बावजूद प्रदर्शन नहीं रुके और नई सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध शुरू हो गए। मोरालेस के समर्थक उन्हें बोलिविया लाने की मांग को लेकर सड़कों पर आए। अब तक प्रदर्शनों में करीब 31 लोग मारे जा चुके हैं।

  9. स्पेन से अलग कैटेलोनिया (मौजूदा बार्सिलोना) की मांग करने वाले 9 अलगाववादी नेताओं को 2017 के हिंसक प्रदर्शनों के लिए अक्टूबर में जेल की सजा सुनाई गई। इसके विरोध में लोगों ने ऑनलाइन मीडिया में साथ आ कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों की तैयारी की। 18 अक्टूबर को करीब 5,25,000 प्रदर्शनकारियों के जुटने के बाद कई दिनों तक शहर में सार्वजनिक सेवाएं और दुकानें भी बंद रहीं।

  10. चिली में मेट्रो के किराए में बढ़ोतरी के बाद अक्टूबर में जनता ने विरोध प्रदर्शन शुरू किए। धीरे-धीरे इन प्रदर्शनों बढ़ते निजीकरण और देश में फैली असमानता का मुद्दा भी जुड़ गया। प्रदर्शनों के लिहाज से सबसे बड़ा दिन 18 अक्टूबर का रहा। इस दिन प्रदर्शनकारियों ने राजधानी सैंटियागो के सभी 81 मेट्रो स्टेशन में तोड़फोड़ की। इनमें से 17 में आग लगा दी गई। एक हफ्ते के अंदर सरकार का विरोध और बढ़ा और 25 अक्टूबर के दिन 12 लाख लोग राष्ट्रपति पिनेरा के खिलाफ सड़कों पर थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस की कार्रवाई में करीब 26 लोगों की मौत हुई। 12 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए। सरकार ने 7 हजार लोगों को जेल में बंद किया।

  11. लेबनान में अक्टूबर में सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए। प्रदर्शनकारियों ने शासन को कम नौकरियों, खराब बिजली, पानी और स्वास्थ्य व्यवस्था के मुद्दे पर भी घेरा। सरकार की तरफ से तंबाकू, पेट्रोल और व्हाट्सऐप पर टैक्स का ऐलान करने के बाद लोगों ने प्रधानमंत्री साद हरीरी के इस्तीफे की मांग कर दी। 21 अक्टूबर को देशभर में हड़ताल का ऐलान किया गया और 12 लाख लोग सड़कों पर उतरे। 29 अक्टूबर को साद हरीरी ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन प्रदर्शन नहीं रुके और लोगों ने टेक्नोक्रैट्स (तकनीक विशेषज्ञों) और गैर-राजनीतिक लोगों से मिलाकर बनी एक सरकार की मांग उठा दी।

  12. अमेरिका की तरफ से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते ईरान सरकार ने आमदनी बढ़ाने के लिए नवंबर में तेल पर 50% टैक्स लगाने का ऐलान किया। हालांकि, इसे लेकर आम लोगों में नाराजगी बढ़ गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 27 नवंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के लिए देशभर में करीब 2 लाख लोग जुटे थे। अम्नेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस की कार्रवाई में अब तक 300 से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि 1000 से ज्यादा गिरफ्तार हो चुके हैं।

  13. नवंबर में प्रधानमंत्री आंद्रेज बाबिस के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों के बाद राजधानी प्राग में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए। बाबिस पर आरोप था कि उन्होंने यूरोपियन यूनियन से मिलने वाली सब्सिडी को अपने निजी बिजनेस में लगाया। 16 नवंबर को करीब 2 लाख लोग एक साथ प्राग में प्रदर्शन के लिए उतरे।

  14. कोलंबिया में राष्ट्रपति इवान दुक मार्केज की सरकार में फैले भ्रष्टाचार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर सख्ती के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे। 21 नवंबर को करीब 2,50,000 प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशनों में तोड़फोड़ की। जवाब में सरकार ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 1,70,000 सैनिकों को उतारा। प्रदर्शनों के पहले ही दिन 3 लोगों की मौत हो गई। अब तक करीब 98 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। मार्केज के इस्तीफे की मांग के साथ अभी प्रदर्शन जारी हैं।

  15. इटली में नवंबर में सार्डाइन्स मूवमेंट शुरू हुआ। यह प्रदर्शन देश की दक्षिणपंथी नेता मैटियो साल्विनी के विरोध में शुरू हुए। लोगों ने राजनीति में पूर्व सरकार की हेट स्पीच और आव्रजन नीतियों के विरोध में प्रदर्शन किए। इनमें से ज्यादातर मौकों पर 50 हजार से 1 लाख लोग जुटे।



      Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
      From France To Hong Kong Protest: 2019 Year of Street Protest - List Of Protest 2019, Know How Many Protest In 2019

Comments

Popular posts from this blog

मोहम्मद सिराज के मुरीद सलमान बट:पाकिस्तानी क्रिकेटर ने कहा- सिराज की बॉडी लैंग्वेज और एग्रेशन दूसरे गेंदबाजों से कहीं बेहतर, इससे भारत को मजबूती मिली

क्रिकेट-फुटबॉल के ऑलराउंडर खिलाड़ी:एलिसा-रिचर्ड्स जैसे खिलाड़ी दोनों खेल प्रोफेशनल स्तर पर आजमा चुके हैं

अर्जेंटीना के नोट पर होगी मेसी की तस्वीर:वर्ल्ड कप जीत के बाद सरकार तैयार कर रही है योजना